डॉक्टर तौहीद अहमद पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज
आजमगढ़ के नरौली स्थित रमा मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल और ट्रॉमा सेंटर एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस बार मामला महज लापरवाही का नहीं, बल्कि मौत की वजह बनने वाला है। यहां इलाज कराने पहुंचे एक युवक की जान सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि डॉक्टर और स्टाफ ने समय पर इलाज नहीं दिया – उल्टा 5 घंटे में इलाज के नाम पर 50 हजार रुपये ऐंठ लिए।
पीड़ित मऊ जिले के सरायलखंशी थाना क्षेत्र निवासी शिवमुनि खरवार ने सिधारी थाने में दी तहरीर में बताया कि उनका बेटा अंगद खरवार पीलिया और पेट की समस्या से पीड़ित था। 14 अप्रैल को उसे आजमगढ़ के रमा मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर तौहीद अहमद ने बेटे को तुरंत इमरजेंसी में भर्ती करने की सलाह दी।
इंजेक्शन लगते ही बिगड़ी तबीयत, डॉक्टरों ने नहीं सुनी चीखें
जैसे ही इंजेक्शन लगाया गया, अंगद की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। पिता ने तुरंत स्टाफ और डॉक्टर तौहीद को सूचना दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। डॉक्टर दूसरे मरीजों में व्यस्त रहे और इस मासूम की हालत लगातार बिगड़ती रही।
रैफर की मांग पर अस्पताल ने दिया धक्का, पिता को भगाया गया बाहर
पिता ने जब रैफर की मांग की, तो स्टाफ ने उन्हें धक्का देकर अस्पताल से बाहर निकाल दिया। न कोई ऐम्बुलेंस, न मेडिकल सपोर्ट – अस्पताल ने इलाज देने की जगह पीड़ित को बाहर कर दिया। इलाज के अभाव में अंगद तड़प-तड़प कर दम तोड़ बैठा।
5 घंटे में 50 हजार की लूट और मौत का प्रमाणपत्र
इतना ही नहीं, अस्पताल प्रशासन ने महज 5 घंटे में इलाज के नाम पर ₹50,000 वसूल लिए। जब मौत हो गई तो मृत्यु प्रमाणपत्र में लिखा गया कि ‘मृत्यु का कारण हार्ट अटैक’ था। जबकि पीड़ित के अनुसार सभी रिपोर्ट्स नॉर्मल थीं। जब उन्होंने इलाज की फाइल मांगी, तो हॉस्पिटल ने देने से साफ इनकार कर दिया।
अब FIR दर्ज, परिवार ने लगाई न्याय की गुहार
शिवमुनि खरवार ने इस मामले में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और डीजीपी को पत्र लिखकर न्याय की मांग की है। फिलहाल सिधारी थाने में डॉक्टर तौहीद अहमद के खिलाफ धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। पुलिस अब मामले की गहराई से जांच में जुटी है।
समाज से सवाल:
क्या डॉक्टर की डिग्री के साथ इंसानियत भी जरूरी नहीं?
क्या किसी मासूम की जान का सौदा 5 घंटे में 50 हजार में हो जाना चाहिए?
और सबसे बड़ा सवाल – क्या रमा हॉस्पिटल जैसा संस्थान "ट्रॉमा सेंटर" कहलाने लायक है?